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Religious Studies

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54.भगवद गीता यथारूप_प्रश्नोत्तरी श्रृंखला_12.07–12.14

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39 questions

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  • 1. Multiple Choice
    2 minutes
    1 pt

    शुद्ध  भक्ति करने पर जीवात्मा को क्या अनुभूति होती है ?

    शुद्ध भक्ति करने से भक्त को इस तथ्य की अनुभूति होने लगती है की ईश्वर  महान है और जीवात्मा उनके अधीन है

    शुद्ध भक्ति करने से भक्त को यह अनुभूति होती है की जीव का कर्तव्य है भगवान की सेवा करना और यदि जीव भगवान की सेवा ना करे तो उसे माया की सेवा करनी पड़ेगी

    उपरोक्त में  से कोई नहीं

    उपरोक्त दोनो

  • 2. Multiple Choice
    2 minutes
    1 pt

    शुद्ध भक्ति के क्या लक्षण हैं ?

    शुद्ध भक्ति ज्ञान और कर्म से आवृत होती है

    शुद्ध भक्ति अहेतुकी और अप्रतिहता होती है

    शुद्ध भक्ति केवल शुद्ध भक्त कर सकता है

    उपरोक्त सभी

  • 3. Multiple Choice
    2 minutes
    1 pt

    कब संसार में कर्म करने से भक्ति कर्म से आवृत हो जाती है ?

    कोई भी कर्म करने से भक्ति कर्म से आवृत हो जाती है, इसलिए कर्म करने से बचना चाहिए

     कर्म  से भक्ति आवृत नहीं होती, इसलिए संसार में निरंतर कर्म करते रहना चाहिए

     अगर कर्म कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए नहीं  किया जाए तो कर्म भक्ति को आवृत कर लेगा, चाहे कर्म भक्ति से सम्बंधित ही क्यों ना हो

    केवल भक्ति से सम्बंधित कर्म करने चाहिए, क्यूँकि ऐसे कर्म कर्ता की भक्ति को कभी आवृत नहीं करते

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